एक व्यंग्य :-
चंद सिक्कों की जदों में बह गए वो सूरमा,
जो कभी इंसानियत की बात कर थकते न थे !
कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
कवि एवं लेखक
Mob-7398328084
ब्लॉग- www.kavishivallahabadi.blogspot.com
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एक व्यंग्य :-
चंद सिक्कों की जदों में बह गए वो सूरमा,
जो कभी इंसानियत की बात कर थकते न थे !
कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
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तू मुझे रोज बहारों मे मिला करता था !
आसमानों के सितारों में मिला करता था !
जब से रूठा है तू मैं हो गया हूँ तनहा सा !
तू मुझे मौजे किनारों में मिला करता था !
कवि शिव इलाहाबादी
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आप सभी को समर्पित प्रेम पर चंद पंक्तियाँ :-
मैं बताता रहा तुम छुपाने लगी ,
इस तरह कुछ मोहब्बत निभाने लगी !
राधिका के समर्पण की तस्वीर बन ,
चैन की मेरी बंशी चुराने लगी !
कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
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किसी चाँद से चेहरे को समर्पित :-
ऐ चाँद तेरा दीदार करूँ तो,
कैसे ये बतला मुझको !
हर सुबह इसी उम्मीद में हो,
कब शाम ढले और तू आये !
कवि शिव इलाहाबादी
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उत्तर प्रदेश में एक महिला के साथ हुई अमानवीय घटना और जनता के मूक दर्शन पर लिखी मेरी ये पंक्तियाँ :-
जब मानवता मूक बने, सज्जनता विष का वमन करे !
तब फिर कैसे कोई रावण सीता माँ को नमन करे!
वहशी के अपराध कृत्य जब मौन सम्बल पाते हों ,
तो फिर कैसे कोई अबला दुष्ट दुशासन दमन करे !
कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
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वर्तमान समाजिक परिदृश्य पर मेरी रचना से कुछ पंक्तियाँ :-
गीत नहीं ,संगीत नहीं है ,भाई बहन में प्रीत नहीं है !
माँ की ममता छली जा रही ,सत्य की दिखती जीत नहीं है !
तड़प रही दिखती मानवता, दया धरम की रीत नहीं है !
कहने को तो लोग हजारों , पर सच्चा कोई मीत नहीं है !
कवि शिव इलाहाबादी
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तेरा रूप , तेरी शरारत,तेरी मुस्कान,
यही तो हैं मेरी संपदा !
फिर तेरे लबों की हंसी के बगैर
ये दुनिया खूबसूरत कैसे हो सकती थी !
एक शेर :-
मै उमीदों के शहर में अब भी हूँ ठहरा नहीं ,
आज भी तू ही मेरी मंजिल भी है और राह भी !
कवि शिव इलाहाबादी
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करवा चौथ पर विशेष : सभी पति और उनकी पत्नियों को समर्पित :-
दामिनी बनके दामन सजायेगी वो ,
चाँद पर भी बिजलियाँ गिराएगी वो !
तेरी लम्बी उमर की करेगी दुआ ,
सोचती तुझको चंदा बुलाएगी वो !
कवि शिव इलाहाबादी
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एक शेर :-
दिल तोड़ के दरिया का पता पूछता है !
वो मुझसे मेरी मोहब्बत की खता पूछता है !
देखता रहता है छुप छुप के झरोखों से अक्सर !
लूटकर मुझको अब मेरी ही दासता पूछता है !
कवि शिव इलाहाबादी
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एक शेर आपके हवाले :-
सम्भले- सम्भले कदम फिर बहकने लगे ,
दिल के भीतर परिंदे चहकने लगे !
वो बहारों को मौसम बताने लगी ,
उनकी खुशबू से हम भी महकने लगे !
कवि शिव इलाहाबादी
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हे ब्राह्मण तुम बाहुबली हो
परशुराम के वंशज हो
इस दुनिया के आदि पुरोधा
इन्सानो मे अंशज हो !
किसी मे इतनी शक्ति नही है
जो तुमको ललकार सके !
उनकी ये औकात नही के
वो तुमको धिक्कार सके !
रावण के दरबार मे ललकारे जो
तुम वो अंगद हो !
सारी सीमा तोड़ दे जग की ,
शक्ति की तुम वो हद हो !
तुम कमजोर धरा मे होगे
जब अनेकता आयेगी !
वर्ना तेरे बुद्धी-बल से,
हर बाधा कतरायेगी !
इस दुनिया के शून्य तुम्ही हो
तुम जलधारा अविरल हो !
आर्यभट्ट हो, तुम सुभाष हो,
तुम्ही आज हो, तुम कल हो !
कवि शिव इलाहाबादी
7398328084
उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर अपने सभी मित्रों को समर्पित मेरी ये पंक्तियाँ:-
सिलसिला यूँ ही चलता रहे जीत का ,
रौशनी प्रीत की तुम बिखेरा करो !
ये जमाना तुम्हारे ही गुण गायेगा ,
बस अँधेरे में यूँ ही सवेरा करो !
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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मौलिक रचनाकारों की ओर से कविता चोर कवियों को समर्पित मेरी ये रचना :-
अगर तुम्हारी नीयत खोटी है तो इतना याद रखो!
चोरी की कविता पढने से कोई कवि नही होता है !
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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तीन तलाक :सुप्रीमकोर्ट द्वारा तीन तलाक पर दिये गए फैसले के स्वागत मे मेरी पंक्तियाँ
है धन्य न्याय का वह मंदिर जिसने आदेश सुनाया है।
मुस्लिम माओं और बहनो के जीवन से खौफ मिटाया है।
अब नहीं कोई मुस्लिम महिला हर रोज छली यूँ जाएगी
छुप-2 के आँसू पोछेगी, घुट-2 के वक्त बितायेगी ।
मै फिर से धन्य कहूँ उसको जिसने यह दर्द मिटाया है।
है धन्य न्याय का वह मंदिर जिसने आदेश सुनाया है।
अब तीन तलाको की फहरिस्तें उम्मीदें है कम होंगी ।
उन माँ बहनो की आँखे न पहले जैसे नम होंगी।
कोई भी अब फोन पे यूँ ही न तलाक दे पाएगा।
रोल्ड गोल्ड के चक्कर मे न सोना को ठुकराएगा।
अब उनकी इज्जत सरेराह नीलाम करी न जाएगी।
बेशर्म हलाला से खुशियाँ काफ़ूर करी न जाएगी।
जिसने ये कुत्सित रीति रची,उनको भी राह दिखाया है।
है धन्य न्याय का वह मंदिर जिसने आदेश सुनाया है।
कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
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एक शेर :-
दिल का तेरे शागिर्द हूँ,
मैं बेवफा नहीं !
बदलेगा जमाना मगर,
मैं वो ही रहूंगा !
कवि शिव इलाहाबादी
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मुजफ्फर नगर रेल हादसा :-
न ही काफिया , न रदीफ़ : केवल भाव
न ही ड्राइवर, न सिग्नल ,बस किस्मत की बलिहारी हूँ !
अपनी बीती किसे सुनाऊँ ,,मैं ' प्रभु ' की लाचारी हूँ !
ठीक किया यूँ ट्रैक कि जीवन की पटरी ही उखड गयी ,
मिलने की चाहत में निकले थे जिससे वो बिछड़ गयी !
' प्रभु 'की लापरवाही ने तस्वीरें कुछ यूँ रच डाली ,
भारत की जीवन रेखा ज्यों तकदीरों में सिमट गयी !
कवि शिव इलाहाबादी
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