हे ब्राह्मण तुम बाहुबली हो
परशुराम के वंशज हो
इस दुनिया के आदि पुरोधा
इन्सानो मे अंशज हो !
किसी मे इतनी शक्ति नही है
जो तुमको ललकार सके !
उनकी ये औकात नही के
वो तुमको धिक्कार सके !
रावण के दरबार मे ललकारे जो
तुम वो अंगद हो !
सारी सीमा तोड़ दे जग की ,
शक्ति की तुम वो हद हो !
तुम कमजोर धरा मे होगे
जब अनेकता आयेगी !
वर्ना तेरे बुद्धी-बल से,
हर बाधा कतरायेगी !
इस दुनिया के शून्य तुम्ही हो
तुम जलधारा अविरल हो !
आर्यभट्ट हो, तुम सुभाष हो,
तुम्ही आज हो, तुम कल हो !
कवि शिव इलाहाबादी
7398328084