शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

कवि शिव इलाहाबादी Kavi Shiv Allahabadi

पुलिस भर्ती की जाति सीमा निर्धारण पर व्यंग

जिस पतवार ने पार लगाया उसको ही अब जला रहे हैं किसको लोकतंत्र  कहते हैं , कैसा रिश्ता निभा रहे हैं ?
एक राष्ट्र की बातें करके जो कल तक थकते ही न थे ,
राष्ट्रवाद की दीवारों को जातिवाद से जला रहें हैं !

ब्राह्मण और दलित कानूनों का अवाम में झगड़ा क्यों है ?
कोई जाति का पिछड़ा क्यूँ है ,जातिवाद ये अगड़ा क्यूँ है ?
कुर्सी के चक्कर  में अपने ही अपनों को सता रहे हैं !
राष्ट्रवाद की दीवारों को जातिवाद से जला रहें हैं !

मजहब  जाति पंथ के झगडे नैतिकता पर भारी क्यों हैं ,
कुर्सी पर बैठे गुंडे  बदमाशों  के आभारी क्यों हैं ?
रावण की नीयत वाले अब राम का मुखड़ा दिखा रहे हैं !
राष्ट्रवाद की दीवारों को जातिवाद से जला रहें हैं !

कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
मोब.7398328084
ब्लॉग www.kavishivallahabadi.blogspot.com
All rights reserved@kavishivallahabadi

मंगलवार, 2 जनवरी 2018

जातिगत आरक्षण देश की एकता और विकास की सबसे बड़ी बाधा

जातिगत आरक्षण जिस तरह से देश की एकता, अखण्डता और विकास में बाधक  बनकर खतरा पैदा कर  रहा है , उस स्थिति में ये पंक्तियाँ लिखना आवश्यक हो जाता है !

आरक्षण की बदली जब सूरज को खाने लगती है ,
गीदड़ की टोली शेरो को राह दिखने  लगती है ,
तब भारत के सौरव अपना गौरव  खोने लगते  हैं !
सिंहो के वंशज भी गीदड़ जैसे रोने लगते हैं !
तब भारत की बीमारू तस्वीर दिखाई देती है !
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !

कोहरे से जब चमक धरा की  फीकी पड़ने लगती है !
इंसानी जातें श्वानी जातों सी  लड़ने  लगती हैं !
तब शावक भी धावक बन कर नर्तन करने लगते है !
और हजारों चूहे खाकर बिल्ले भी हज करते हैं !
तब भारत की बिखरी सी तस्वीर दिखाई देती है ,
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !

जातिवाद  शोषित किसान जब सहमा-2  दिखता है !
आरक्षित लोहा मँहगा और सोना  सस्ता बिकता  है !
तब उन्नत  मस्तिष्क  गलत राहों पर मुड़ने लगते हैं ,
पेट पालने  के खातिर जंगों  से जुड़ने लगते हैं !
ऐसे में उनके दिल में एक पीर दिखाई देती है ,
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !

लोकतंत्र का खुले आम  जब खंडन  होने लगता है ,
देशद्रोहियों ,जयचंदों का वंदन  होने लगता है !
और भेड़िये नरमांसों  का भक्षण  करने लगते हैं !
सत्ता में बैठे खूनी का रक्षण  करने लगते हैं !
तब सरल ह्रदय के अंतस में एक पीर दिखाई देती है !
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !

कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
मोब.7398328084
ब्लॉग www.kavishivallahabadi.blogspot.com
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