जातिगत आरक्षण जिस तरह से देश की एकता, अखण्डता और विकास में बाधक बनकर खतरा पैदा कर रहा है , उस स्थिति में ये पंक्तियाँ लिखना आवश्यक हो जाता है !
आरक्षण की बदली जब सूरज को खाने लगती है ,
गीदड़ की टोली शेरो को राह दिखने लगती है ,
तब भारत के सौरव अपना गौरव खोने लगते हैं !
सिंहो के वंशज भी गीदड़ जैसे रोने लगते हैं !
तब भारत की बीमारू तस्वीर दिखाई देती है !
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !
कोहरे से जब चमक धरा की फीकी पड़ने लगती है !
इंसानी जातें श्वानी जातों सी लड़ने लगती हैं !
तब शावक भी धावक बन कर नर्तन करने लगते है !
और हजारों चूहे खाकर बिल्ले भी हज करते हैं !
तब भारत की बिखरी सी तस्वीर दिखाई देती है ,
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !
जातिवाद शोषित किसान जब सहमा-2 दिखता है !
आरक्षित लोहा मँहगा और सोना सस्ता बिकता है !
तब उन्नत मस्तिष्क गलत राहों पर मुड़ने लगते हैं ,
पेट पालने के खातिर जंगों से जुड़ने लगते हैं !
ऐसे में उनके दिल में एक पीर दिखाई देती है ,
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !
लोकतंत्र का खुले आम जब खंडन होने लगता है ,
देशद्रोहियों ,जयचंदों का वंदन होने लगता है !
और भेड़िये नरमांसों का भक्षण करने लगते हैं !
सत्ता में बैठे खूनी का रक्षण करने लगते हैं !
तब सरल ह्रदय के अंतस में एक पीर दिखाई देती है !
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !
कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
मोब.7398328084
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