वर्तमान समाजिक परिदृश्य पर मेरी रचना से कुछ पंक्तियाँ :-
गीत नहीं ,संगीत नहीं है ,भाई बहन में प्रीत नहीं है !
माँ की ममता छली जा रही ,सत्य की दिखती जीत नहीं है !
तड़प रही दिखती मानवता, दया धरम की रीत नहीं है !
कहने को तो लोग हजारों , पर सच्चा कोई मीत नहीं है !
कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
मोब.7398328084
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