गुरुवार, 24 अगस्त 2017

तीन तलाक पर मेरी पंक्तियाँ :कवि शिव इलाहाबादी

तीन तलाक :सुप्रीमकोर्ट द्वारा तीन तलाक पर दिये गए फैसले के स्वागत मे मेरी पंक्तियाँ

है धन्य न्याय का वह मंदिर जिसने आदेश सुनाया है।
मुस्लिम माओं और बहनो के जीवन से खौफ मिटाया है।

अब नहीं कोई मुस्लिम महिला हर रोज छली यूँ जाएगी
छुप-2 के आँसू पोछेगी, घुट-2 के वक्त बितायेगी ।

मै फिर से धन्य कहूँ उसको जिसने यह दर्द मिटाया है।
है धन्य न्याय का वह मंदिर जिसने आदेश सुनाया है।

अब तीन तलाको की फहरिस्तें उम्मीदें है कम होंगी ।
उन माँ बहनो की आँखे न पहले जैसे नम होंगी।

कोई भी अब फोन पे यूँ ही न तलाक दे पाएगा।
रोल्ड गोल्ड के चक्कर मे न सोना को ठुकराएगा।

अब उनकी इज्जत सरेराह नीलाम करी न जाएगी।
बेशर्म हलाला से खुशियाँ काफ़ूर करी न जाएगी।

जिसने ये कुत्सित रीति रची,उनको भी राह दिखाया है।
है धन्य न्याय का वह मंदिर जिसने आदेश सुनाया है।

कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
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बुधवार, 23 अगस्त 2017

एक शेर : kavi shiv allahabadi

एक शेर :-

दिल का तेरे शागिर्द  हूँ,
मैं बेवफा  नहीं !
बदलेगा जमाना  मगर, 
मैं वो ही रहूंगा  !

कवि शिव इलाहाबादी
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सोमवार, 21 अगस्त 2017

मुजफ्फर नगर खतौली रेल हादसा

मुजफ्फर नगर रेल हादसा  :-
न ही काफिया , न रदीफ़ :  केवल  भाव

न ही ड्राइवर, न सिग्नल  ,बस किस्मत की बलिहारी  हूँ !
अपनी बीती किसे  सुनाऊँ ,,मैं ' प्रभु ' की लाचारी  हूँ !

ठीक किया यूँ ट्रैक  कि जीवन की पटरी ही उखड  गयी ,
मिलने की चाहत में निकले  थे  जिससे  वो बिछड़  गयी !

' प्रभु 'की लापरवाही  ने तस्वीरें  कुछ यूँ रच  डाली  ,
भारत की जीवन रेखा ज्यों  तकदीरों  में सिमट  गयी !

कवि शिव इलाहाबादी
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हामिद अंसारी के बेतुके बयान पर मेरी पंक्तियाँ !

विलंब के लिए क्षमा के साथ हामिद अंसारी के बेतुके बयान पर मेरी पंक्तियाँ:-

हामिद अंसारी को शायद ये न ज्ञान रहा होगा,
संविधान की बातों से शायद अंजान रहा होगा।
ऊँचे पद पर बैठ के ऐसी ओछी बात नहीं करते,
बुद्धि बुढ़ापा ग्रसित रही या मन शैतान रहा होगा।

जाने किसने इस पुतले को उस कुर्सी पर बिठलाया,
संविधान और ज्ञानहीन को ज्ञान पुरुष सा दिखलाया।
इससे तो लगता है के वो भी बेईमान रहा होगा,
संविधान की बातों से शायद अंजान रहा होगा।

देश का खतरा आज तलक जो कभी भाँप न पाया हो ।
राष्ट्र को संबोधित करके न राष्ट्रप्रेम सिखलाया हो।
तो फिर उसको राष्ट्रधर्म का कैसे ज्ञान रहा होगा?
संविधान की बातों से शायद अंजान रहा होगा।

इस अवाम मे जो कलाम हो बस उसकी ही पूजा हो।
हामिद अंसारी सा उस पद पर न कोई दूजा हो ।
सुबह का चोला ओढ़ के आया, शायद शाम रहा होगा,
संविधान की बातों से शायद अंजान रहा होगा।

कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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रविवार, 6 अगस्त 2017

यूँ ही करता रहूँ मै तेरी बंदगी

तुम्हारे अनुरोध पर चाँद से चेहरे के लिये लिखी मेरी ये रचना :-

जिन्द्गी तेरे संग तेरे संग है खुशी !
गम भुलाने को काफी है तेरी हँसी !
चाँद से तेरे चेहरे को  दिल मे बसा !
यूँ ही करता रहूँ मैं तेरी बंदगी !

कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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Hindi sites

https://www.quora.com/What-are-the-best-sites-to-get-your-poem-published-in-Hindi

राखी बँधाता चल : कवि शिव इलाहाबादी

प्रेम की नयी धुन सजाता चल,

हर रिश्ता बखूबी निभाता चल !

मत भूल कि कल है राखी का त्यौहार,

जो भी मिले उससे राखी बँधाता चल !

कवि शिव इलाहाबादी
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शनिवार, 5 अगस्त 2017

मित्रता दिवस पर विशेष: Friendship day special

मित्रता दिवस पर आप सभी को समर्पित मेरी रचना से कुछ पंक्तियाँ:-

सफर की राह मुश्किल भी,
वो क्षण मे खोल देता है !

सभी डर भाग जाता है,
वो जिस क्षण बोल देता है !

नही होती है दिल मे स्वार्थ की,
जिसके कोई भी बू !

वो सच्चा मित्र जीवन मे,
मधुरता घोल देता है !

कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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बुधवार, 2 अगस्त 2017

एक शहीद सैनिक के परिवार का दर्द :-

एक शहीद सैनिक के परिवार का दर्द :-

कैसे कह दूँ कि तुम मेरे,
अपने हो अब आ जाओ!

ये आंखे अब भी बेसबरी,
से तुमको ही तकती हैं !

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शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

आखिर गरीबी जातिगत क्यो : आखिर ये दोहरे चरित्र की राजनीति कहाँ तक जायज है ?

गरीबी जाति बता कर नही आती ! फिर गरीबी का जातिगत आकलन कितना जायज है ! आपकी  राय अपेक्षित है :-

आतंकी का धर्म नही है
फिर गरीब की जाती(जाति) क्यो ?

इस दुनिया को नर्क बनाने
की दोहरी परिपाटी क्यों ?

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मंगलवार, 11 जुलाई 2017

वादे के टूट जाने से टूट रहे लोगों के लिये लिखी मेरी ये पंक्तियाँ

मत हो परेशाँ,गर वादा टूट गया :-
देखिये ये पंक्तियाँ:-

जो चीजे टूट जायें तो ,
करें उनका भरोशा क्या !

शमा बुझने लगे गर तो,
बहारें क्या, झरोखा क्या ?

रही एक बात वादे की,
तो उस पर क्या खफा होना?

जो जीवन ही नही अपना
तो दूजे का भरोशा क्या ?


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शनिवार, 8 जुलाई 2017

एक बेबाक और बिजली के समान शोहदों पर बरसने वाली महिला का समर्थन करती मेरी पंक्तियाँ :-

बहादुर और शोहदों पर बिजली की तरह बरसने वाली महिलाओं पर  कुछ पंक्तियाँ:-

तेरे साहस से शायद अब तक अंजान रहा होगा !
बाते है बेबाक तेरी वो न पहचान रहा होगा !

बोल गया वो सोच के अबला जो कुछ भी मन मे आया!
लेकिन आ टपकेगी ज्वाला ये न भान रहा होगा !

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गुरुवार, 6 जुलाई 2017

किसी के घूरने और प्यार मे अंतर कर पाने पर लिखी ये पंक्तियाँ-कवि शिव इलाहाबादी

किसी के घूरने और प्यार मे अंतर कर पाने पर लिखी ये पंक्तियाँ:-

भला हो नजरों का तेरी
जो झुककर सच बता पायी !

नही तुम यूँ किसी के घूरने को,
प्यार कह देती !

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सोमवार, 3 जुलाई 2017

सामाजिक दरिन्दो से खुद को बचाने की कोशिश करती लड़कियों को समर्पित :-

सामाजिक दरिन्दो से खुद को बचाने की कोशिश करती लड़कियों को समर्पित :-

बचाना ही नही काफी, उन्हे दुत्कारना होगा !
जो खूनी हैं दरिन्दे उनको भी अब मारना होगा !

नही आसान होगा अब महज लक्ष्मी बने रहना !
कि बनके लक्ष्मीबाई उनको यूँ धिक्कारना होगा !

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शनिवार, 1 जुलाई 2017

माँ की याद :कवि शिव इलाहाबादी

*** माँ की याद ***

अक्सर सिहर उठता है ये दिल,
जब याद आती है माँ की;
और उसके साथ बिताए हर लम्हे,
मेरी धडकनों मे धड़कने लगते हैं।

तो
छा जाती है जिंदगी मे एक अजीब सी खामोशी,
और ज़िंदगी लगने लगती है,
बिल्कुल नीरस और वीरान।

याद आता है वो समय
जब रात के घने अंधेरों में,
माँ का आँचल होता था,
सबसे महफूज जगह।
और बीमार होने पर माँ के पास बैठना,
लगता था सबसे सुखद और प्यारा।

मगर अफसोस!
कि अब हम नही कर पायेंगे,
उस सुखद क्षण का फिर कभी एहसास ।
क्योकि अब हम उसकी दुनिया का हिस्सा नही हैं।
वो छोडकर चली गयी है हमे,
इन वीरानियों में
अकेला तड़पने के लिए।
वो भी एक ऐसी जगह
जिसकी लोग बातें तो करते हैं,
पर उसे कभी किसी ने देखा नही।

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गुरुवार, 29 जून 2017

प्यार करने वालों को आगाह करती मेरी ये पंक्तियाँ :

प्यार करने वालों को आगाह करती मेरी ये पंक्तियाँ :-

काश तुम सम्भल जाते तो अच्छा था !
किसी से यूँ दिल न लगाते तो अच्छा था !
हमने बहुतो को इस दलदल मे गिरते देखा है !
तुम इससे बाहर निकल आते तो अच्छा था !

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एक सपा नेता द्वारा सेना के जवानो पर बलात्कार का आरोप लगाने पर जनता की आवाज को दर्शाती मेरी ये पंक्तियाँ :-

सेना के जवानो पर बलात्कार का आरोप लगाने वाले एक सपा नेता के खिलाफ जनता की आवाज को प्रदर्शित करती मेरी ये पंक्तियाँ:-

जहरीले इक सर्प ने फिर
आज दिया फुफकार !

सेना पर कर विष वमन,
किया है फिर प्रतिकार !

इसके फन को दो कुचल,
और लो दाँत निकाल !

फिर भी फुफकारे अगर,
खींच लो इसकी खाल !


कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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सोमवार, 26 जून 2017

आज सच्चाई से तू पीछा छुडाता क्यूँ है ? कवि शिव इलाहाबादी

आज लिखी एक गजल से एक मतला और एक शेर :-

आज सच्चाई से तू पीछा,
छुडाता क्यों है ?
प्यार जब करता है तो
इतना छुपाता क्यो है ?

जमाने मे बडी दुश्वारियाँ है
ये सच है !
मगर अंजाना सा फिर रिश्ता
निभाता क्यूँ है ?


कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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"कविता क्या है " कवि शिव इलाहाबादी

सुबह से कविता विषय पर हिंदी दर्शन वाट्सअप ग्रुप मे सभी की अनेकानेक चर्चा-परिचर्चा सुनने के बाद दो पंक्तियाँ मस्तिष्क मे आयी जिन्हे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूँ :-

कविता क्या है ?

थोडे से शब्दों मे जब
कोई बात कहीजाए अविरल,

दिल को छूने वाले उस
लेखन को कविता कहते है !

कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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