किसी के घूरने और प्यार मे अंतर कर पाने पर लिखी ये पंक्तियाँ:-
भला हो नजरों का तेरी
जो झुककर सच बता पायी !
नही तुम यूँ किसी के घूरने को,
प्यार कह देती !
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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