*** माँ की याद ***
अक्सर सिहर उठता है ये दिल,
जब याद आती है माँ की;
और उसके साथ बिताए हर लम्हे,
मेरी धडकनों मे धड़कने लगते हैं।
तो
छा जाती है जिंदगी मे एक अजीब सी खामोशी,
और ज़िंदगी लगने लगती है,
बिल्कुल नीरस और वीरान।
याद आता है वो समय
जब रात के घने अंधेरों में,
माँ का आँचल होता था,
सबसे महफूज जगह।
और बीमार होने पर माँ के पास बैठना,
लगता था सबसे सुखद और प्यारा।
मगर अफसोस!
कि अब हम नही कर पायेंगे,
उस सुखद क्षण का फिर कभी एहसास ।
क्योकि अब हम उसकी दुनिया का हिस्सा नही हैं।
वो छोडकर चली गयी है हमे,
इन वीरानियों में
अकेला तड़पने के लिए।
वो भी एक ऐसी जगह
जिसकी लोग बातें तो करते हैं,
पर उसे कभी किसी ने देखा नही।
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
कवि एवं लेखक
मो.- 7398328084
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ब्लॉग www.kavishivallahabadi.blogspot.com
दिनांक 10/10/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
सुन्दर।
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