मत हो परेशाँ,गर वादा टूट गया :-
देखिये ये पंक्तियाँ:-
जो चीजे टूट जायें तो ,
करें उनका भरोशा क्या !
शमा बुझने लगे गर तो,
बहारें क्या, झरोखा क्या ?
रही एक बात वादे की,
तो उस पर क्या खफा होना?
जो जीवन ही नही अपना
तो दूजे का भरोशा क्या ?
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
कवि एवं लेखक
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