एक शेर :-
मै उमीदों के शहर में अब भी हूँ ठहरा नहीं ,
आज भी तू ही मेरी मंजिल भी है और राह भी !
कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
मोब.7398328084
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एक शेर :-
मै उमीदों के शहर में अब भी हूँ ठहरा नहीं ,
आज भी तू ही मेरी मंजिल भी है और राह भी !
कवि शिव इलाहाबादी
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करवा चौथ पर विशेष : सभी पति और उनकी पत्नियों को समर्पित :-
दामिनी बनके दामन सजायेगी वो ,
चाँद पर भी बिजलियाँ गिराएगी वो !
तेरी लम्बी उमर की करेगी दुआ ,
सोचती तुझको चंदा बुलाएगी वो !
कवि शिव इलाहाबादी
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एक शेर :-
दिल तोड़ के दरिया का पता पूछता है !
वो मुझसे मेरी मोहब्बत की खता पूछता है !
देखता रहता है छुप छुप के झरोखों से अक्सर !
लूटकर मुझको अब मेरी ही दासता पूछता है !
कवि शिव इलाहाबादी
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एक शेर आपके हवाले :-
सम्भले- सम्भले कदम फिर बहकने लगे ,
दिल के भीतर परिंदे चहकने लगे !
वो बहारों को मौसम बताने लगी ,
उनकी खुशबू से हम भी महकने लगे !
कवि शिव इलाहाबादी
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हे ब्राह्मण तुम बाहुबली हो
परशुराम के वंशज हो
इस दुनिया के आदि पुरोधा
इन्सानो मे अंशज हो !
किसी मे इतनी शक्ति नही है
जो तुमको ललकार सके !
उनकी ये औकात नही के
वो तुमको धिक्कार सके !
रावण के दरबार मे ललकारे जो
तुम वो अंगद हो !
सारी सीमा तोड़ दे जग की ,
शक्ति की तुम वो हद हो !
तुम कमजोर धरा मे होगे
जब अनेकता आयेगी !
वर्ना तेरे बुद्धी-बल से,
हर बाधा कतरायेगी !
इस दुनिया के शून्य तुम्ही हो
तुम जलधारा अविरल हो !
आर्यभट्ट हो, तुम सुभाष हो,
तुम्ही आज हो, तुम कल हो !
कवि शिव इलाहाबादी
7398328084
उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर अपने सभी मित्रों को समर्पित मेरी ये पंक्तियाँ:-
सिलसिला यूँ ही चलता रहे जीत का ,
रौशनी प्रीत की तुम बिखेरा करो !
ये जमाना तुम्हारे ही गुण गायेगा ,
बस अँधेरे में यूँ ही सवेरा करो !
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
कवि एवं लेखक
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मौलिक रचनाकारों की ओर से कविता चोर कवियों को समर्पित मेरी ये रचना :-
अगर तुम्हारी नीयत खोटी है तो इतना याद रखो!
चोरी की कविता पढने से कोई कवि नही होता है !
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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तीन तलाक :सुप्रीमकोर्ट द्वारा तीन तलाक पर दिये गए फैसले के स्वागत मे मेरी पंक्तियाँ
है धन्य न्याय का वह मंदिर जिसने आदेश सुनाया है।
मुस्लिम माओं और बहनो के जीवन से खौफ मिटाया है।
अब नहीं कोई मुस्लिम महिला हर रोज छली यूँ जाएगी
छुप-2 के आँसू पोछेगी, घुट-2 के वक्त बितायेगी ।
मै फिर से धन्य कहूँ उसको जिसने यह दर्द मिटाया है।
है धन्य न्याय का वह मंदिर जिसने आदेश सुनाया है।
अब तीन तलाको की फहरिस्तें उम्मीदें है कम होंगी ।
उन माँ बहनो की आँखे न पहले जैसे नम होंगी।
कोई भी अब फोन पे यूँ ही न तलाक दे पाएगा।
रोल्ड गोल्ड के चक्कर मे न सोना को ठुकराएगा।
अब उनकी इज्जत सरेराह नीलाम करी न जाएगी।
बेशर्म हलाला से खुशियाँ काफ़ूर करी न जाएगी।
जिसने ये कुत्सित रीति रची,उनको भी राह दिखाया है।
है धन्य न्याय का वह मंदिर जिसने आदेश सुनाया है।
कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
कवि एवं लेखक
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एक शेर :-
दिल का तेरे शागिर्द हूँ,
मैं बेवफा नहीं !
बदलेगा जमाना मगर,
मैं वो ही रहूंगा !
कवि शिव इलाहाबादी
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मुजफ्फर नगर रेल हादसा :-
न ही काफिया , न रदीफ़ : केवल भाव
न ही ड्राइवर, न सिग्नल ,बस किस्मत की बलिहारी हूँ !
अपनी बीती किसे सुनाऊँ ,,मैं ' प्रभु ' की लाचारी हूँ !
ठीक किया यूँ ट्रैक कि जीवन की पटरी ही उखड गयी ,
मिलने की चाहत में निकले थे जिससे वो बिछड़ गयी !
' प्रभु 'की लापरवाही ने तस्वीरें कुछ यूँ रच डाली ,
भारत की जीवन रेखा ज्यों तकदीरों में सिमट गयी !
कवि शिव इलाहाबादी
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विलंब के लिए क्षमा के साथ हामिद अंसारी के बेतुके बयान पर मेरी पंक्तियाँ:-
हामिद अंसारी को शायद ये न ज्ञान रहा होगा,
संविधान की बातों से शायद अंजान रहा होगा।
ऊँचे पद पर बैठ के ऐसी ओछी बात नहीं करते,
बुद्धि बुढ़ापा ग्रसित रही या मन शैतान रहा होगा।
जाने किसने इस पुतले को उस कुर्सी पर बिठलाया,
संविधान और ज्ञानहीन को ज्ञान पुरुष सा दिखलाया।
इससे तो लगता है के वो भी बेईमान रहा होगा,
संविधान की बातों से शायद अंजान रहा होगा।
देश का खतरा आज तलक जो कभी भाँप न पाया हो ।
राष्ट्र को संबोधित करके न राष्ट्रप्रेम सिखलाया हो।
तो फिर उसको राष्ट्रधर्म का कैसे ज्ञान रहा होगा?
संविधान की बातों से शायद अंजान रहा होगा।
इस अवाम मे जो कलाम हो बस उसकी ही पूजा हो।
हामिद अंसारी सा उस पद पर न कोई दूजा हो ।
सुबह का चोला ओढ़ के आया, शायद शाम रहा होगा,
संविधान की बातों से शायद अंजान रहा होगा।
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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तुम्हारे अनुरोध पर चाँद से चेहरे के लिये लिखी मेरी ये रचना :-
जिन्द्गी तेरे संग तेरे संग है खुशी !
गम भुलाने को काफी है तेरी हँसी !
चाँद से तेरे चेहरे को दिल मे बसा !
यूँ ही करता रहूँ मैं तेरी बंदगी !
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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प्रेम की नयी धुन सजाता चल,
हर रिश्ता बखूबी निभाता चल !
मत भूल कि कल है राखी का त्यौहार,
जो भी मिले उससे राखी बँधाता चल !
कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
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मित्रता दिवस पर आप सभी को समर्पित मेरी रचना से कुछ पंक्तियाँ:-
सफर की राह मुश्किल भी,
वो क्षण मे खोल देता है !
सभी डर भाग जाता है,
वो जिस क्षण बोल देता है !
नही होती है दिल मे स्वार्थ की,
जिसके कोई भी बू !
वो सच्चा मित्र जीवन मे,
मधुरता घोल देता है !
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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एक शहीद सैनिक के परिवार का दर्द :-
कैसे कह दूँ कि तुम मेरे,
अपने हो अब आ जाओ!
ये आंखे अब भी बेसबरी,
से तुमको ही तकती हैं !
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
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गरीबी जाति बता कर नही आती ! फिर गरीबी का जातिगत आकलन कितना जायज है ! आपकी राय अपेक्षित है :-
आतंकी का धर्म नही है
फिर गरीब की जाती(जाति) क्यो ?
इस दुनिया को नर्क बनाने
की दोहरी परिपाटी क्यों ?
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
कवि एवं लेखक
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