सत्ता की अनावश्यक हिटलरशाही और तथाकथित कलमकारों की चुप्पी पर व्यंग करती मेरी ये रचना :-
कलम सुहागन बनी हुई है ,
सत्ता के गलियारों की !
चाँदी ही चाँदी दिखती है ,
नेताओं के यारों की !
एक तरफ सैनिक बेचारे,
मारे जाते सीमा पर !
सन्सद बस्ती बनी हुई है ,
कुर्सी के बीमारों की !
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
कवि एवं लेखक
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