वर्तमान सरकार को अपनी पुरानी कही हुई बातों को याद दिलाती मेरी ये नवीन रचना :-
कहाँ है आज वो ललकार
जो कल तक थी जोरों से !
हैं दिखती चीख अब दबती हुई सी
आज शोरों से !
तुम्ही ने कल कहा था सर कलम
करने को दुश्मन के ,
तो फिर अब क्यों ठगे से हो खडे
चोरों छिछोरों से ?
कवि शिव इलाहाबादी 'यश '
कवि एवं लेखक
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