गुरुवार, 31 मई 2018

Maa ki kavita माँ की कविता


जीवन का हर ताना बाना माँ होती है ,
बच्चे का संपूर्ण जमाना माँ होती है !
उसके बिना न जीवन की बगिया फलती है ,
खुशियों का संसार सुहाना माँ होती है !



राहों में हो धुप तो वो छाया होती है ,
बच्चों के हर सुख दुःख में साया होती है !
दुःखते दिल का मधुर तराना  माँ होती है,
खुशियों का संसार सुहाना  माँ होती है !

कवि शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084










सोमवार, 28 मई 2018

Fir se halaton par mujhko geet naye gadhne honge



फिर से हालातों पर मुझको गीत नए गढ़ने  होंगे !
सत्य झूँठ की जंग  छिड़ी  है युद्ध  मुझे लड़ने होंगे !
सीधे से चेहरों पर मैंने अजब मुखौटा देखा हैं  ,
कंस, दुशासन की नगरी है ,हर चेहरे पढ़ने होंगे !

कवि शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084




शुक्रवार, 25 मई 2018

कैसे कैसे जख्म मिले हैं सीने में ?

कैसे कैसे जख्म मिले हैं सीने में,
क्या मिलता है जातिवाद को जीने में ?

कवि शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084

शनिवार, 19 मई 2018

आबों में कड़वाहट क्यों है, क्यों पुष्प पंखुड़ी बिखरी सी


आबों में कड़वाहट क्यों है ,क्यों पुष्प पंखुड़ी  बिखरी  सी ,
क्यों आज कली है मुरझाई  जो कल होती थी निखरी  सी !

क्यों माला से मोती टूटे, क्यों वन से उपवन टूट गए !
जो कल तक होते थे अपने क्यों अपनों से ही रूठ गए ?

क्यों दुनिया चाँद सितारों की तूफ़ान के जद में बिखर गयी !
क्यों जातिवाद की लपटों में सब मर्यादायें सिहर गयी !

क्या बचा धर्म के झगडे में ,क्या रखा है कड़वी वाणी में ?
क्या तुमने धर्म लिखा पाया है हवा वनस्पति पानी में ?

क्यों बाँट  रहे हो नफरत  तुम क्यों लहूं बहाते फिरते  हो
जीवन की चंद सी साँसों को क्यों व्यर्थ गंवाते फिरते हो !

आओ कुछ ऐसा काम करें की अपनेपन में खो जाएँ ,
सबकी मर्यादा को samjhe और एक दूजे के हो जाएँ  !

कुछ ऐसा गीत लिखें मिल हम कि जीवन मधुरिम हो जाए,
हम विश्व शांति के दूत  बने और शांति निशा में खो जाएँ  !

जीवन को मधुर बनाने को सात्विक  अरमान जरूरी है !
हो विश्व शांतिमय  युगों  युगों, एक हिंदुस्तान जरूरी है !

शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084




गुरुवार, 17 मई 2018

Sitaron aur गर्दिश par sher

एक शेर :

भले हों पाँव मेरे आज भी गर्दिश में ऐ मौला,
मगर नजरें हमारी आज भी रहती  सितारों पे !

कवि शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084

सोमवार, 7 मई 2018

सरकार : एक शेर

सरकारें बस महज दिखावा करती हैं !
झूठे वादे, झूठा  दावा करती हैं !

कवि शिव इलाहाबादी
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गुरुवार, 3 मई 2018

Ek sher

एक शेर :

जख्म सीने में दबें हो लाख पर,
न कभी आँसू बहाना चाहिए !
दुनिया ये जालिम बड़ी बेदर्द है,
हर घड़ी बस मुस्कराना चाहिये !

कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
मोब.7398328084
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बुधवार, 25 अप्रैल 2018

Ek sher kavi shiv allahabadi

चंद सिक्कों के लिए जो बेचते हैं आबरू,
है दुखद कि आज वो ही देश के उद्गार हैं !

कवि शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084

गुरुवार, 8 मार्च 2018

Mahila diwas vishesh महिला दिवस विशेष

देवी तुल्य  सभी नारियों  को समर्पित मेरी रचना के कुछ अंश  :

इस जीवन को वो ही परिपूर्ण बनाती है ,
हर सुख  दुःख में सबका  साथ निभाती है !

हम किसको उससे बेहतर कह दें हे राधे,
जो मुझको तेरा भी ज्ञान कराती है !

सच्चे अर्थो  में वो ही देवी रूप भी है ,
इस दुनिया में जो नारी  कहलाती  है !

कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
कवि एवं लेखक
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शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

कवि शिव इलाहाबादी Kavi Shiv Allahabadi

पुलिस भर्ती की जाति सीमा निर्धारण पर व्यंग

जिस पतवार ने पार लगाया उसको ही अब जला रहे हैं किसको लोकतंत्र  कहते हैं , कैसा रिश्ता निभा रहे हैं ?
एक राष्ट्र की बातें करके जो कल तक थकते ही न थे ,
राष्ट्रवाद की दीवारों को जातिवाद से जला रहें हैं !

ब्राह्मण और दलित कानूनों का अवाम में झगड़ा क्यों है ?
कोई जाति का पिछड़ा क्यूँ है ,जातिवाद ये अगड़ा क्यूँ है ?
कुर्सी के चक्कर  में अपने ही अपनों को सता रहे हैं !
राष्ट्रवाद की दीवारों को जातिवाद से जला रहें हैं !

मजहब  जाति पंथ के झगडे नैतिकता पर भारी क्यों हैं ,
कुर्सी पर बैठे गुंडे  बदमाशों  के आभारी क्यों हैं ?
रावण की नीयत वाले अब राम का मुखड़ा दिखा रहे हैं !
राष्ट्रवाद की दीवारों को जातिवाद से जला रहें हैं !

कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
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मंगलवार, 2 जनवरी 2018

जातिगत आरक्षण देश की एकता और विकास की सबसे बड़ी बाधा

जातिगत आरक्षण जिस तरह से देश की एकता, अखण्डता और विकास में बाधक  बनकर खतरा पैदा कर  रहा है , उस स्थिति में ये पंक्तियाँ लिखना आवश्यक हो जाता है !

आरक्षण की बदली जब सूरज को खाने लगती है ,
गीदड़ की टोली शेरो को राह दिखने  लगती है ,
तब भारत के सौरव अपना गौरव  खोने लगते  हैं !
सिंहो के वंशज भी गीदड़ जैसे रोने लगते हैं !
तब भारत की बीमारू तस्वीर दिखाई देती है !
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !

कोहरे से जब चमक धरा की  फीकी पड़ने लगती है !
इंसानी जातें श्वानी जातों सी  लड़ने  लगती हैं !
तब शावक भी धावक बन कर नर्तन करने लगते है !
और हजारों चूहे खाकर बिल्ले भी हज करते हैं !
तब भारत की बिखरी सी तस्वीर दिखाई देती है ,
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !

जातिवाद  शोषित किसान जब सहमा-2  दिखता है !
आरक्षित लोहा मँहगा और सोना  सस्ता बिकता  है !
तब उन्नत  मस्तिष्क  गलत राहों पर मुड़ने लगते हैं ,
पेट पालने  के खातिर जंगों  से जुड़ने लगते हैं !
ऐसे में उनके दिल में एक पीर दिखाई देती है ,
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !

लोकतंत्र का खुले आम  जब खंडन  होने लगता है ,
देशद्रोहियों ,जयचंदों का वंदन  होने लगता है !
और भेड़िये नरमांसों  का भक्षण  करने लगते हैं !
सत्ता में बैठे खूनी का रक्षण  करने लगते हैं !
तब सरल ह्रदय के अंतस में एक पीर दिखाई देती है !
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !

कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
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शनिवार, 30 दिसंबर 2017

लाठिया बाजार में बिकने लगी हैं

RisingStar का Free Style! गीत [कवि_शिव_इलाहाबादी] द्वारा, StarMaker पर निहायत खूबसूरत आवाज! #music #karaoke #sing https://m.starmakerstudios.com/share?recording_id=5910974494032992&share_type=more

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

मैं हालातों का शायर हूँ......

RisingStar का Free Style! गीत [कवि_शिव_इलाहाबादी] द्वारा, StarMaker पर निहायत खूबसूरत आवाज! #music #karaoke #sing https://m.starmakerstudios.com/share?recording_id=5910974494005394&share_type=more

शनिवार, 23 दिसंबर 2017

Jisko rakshak samajh rahe the wo hi....

जब कुर्सी का नशा जनमानस  की समस्याओ को भूलने का कारण बन जाये, गरीबों और किसानो  की स्थिति जस की तस बनी रहने लगे, देश की होनहार युवा जनता बेरोजगारी  का दंश  झेल  रही हो और पूरे देश में जातिवाद  के नाम पर गृहयुद्ध  जैसे हालात पैदा हो गए हों तो ये लिखना कलम की मजबूरी  हो जाती है !

जिसको रक्षक समझ रहे थे ,वो ही तन पे आरी  निकले !
शेर खाल में घूम  रहे थे , गधे  की हिस्सेदारी  निकले !
बातें बहुत गरीबों की थी जिनके मुँह में वर्षों से ,
कुर्सी मिलते ही सब भूले  , चोर चोर की यारी निकले !

सुलग रहा है देश ये सारा जातिवाद के झगड़ों में ,
कुछ है पोषक  पिछड़ों  के तो कुछ हैं शामिल अगड़ों में ,
देश की बातें करने वाले भावों के व्यापारी निकले ,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर-2 की यारी निकले !

कृषक के बच्चे तरस  रहे हैं , सूखी रोटी खाने को ,
नेता जी को समय नहीं है उनका दर्द मिटाने को !
हर गरीब को काम मिलेगा , भाषण  सब सरकारी निकले,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर-2  की यारी निकले !

कल तक बात गरीबों की जो करते थे चौराहों पर,
हाथ मिलाते, पैर दबाते  मिलते थे जो राहों  पर ,
बदल गए वो समय बदलते, लाइलाज बीमारी निकले,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर-2  की यारी निकले !

कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
कवि एवं लेखक
Mob-7398328084
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रविवार, 17 दिसंबर 2017

शनिवार, 16 दिसंबर 2017

कवि शिव इलाहाबादी : एक व्यंग्य ek vyangya : kavi shiv allahabadi

एक व्यंग्य :-

चंद सिक्कों की जदों  में बह गए वो सूरमा,
जो कभी इंसानियत की बात कर थकते न थे !

कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
कवि एवं लेखक
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रविवार, 10 दिसंबर 2017

तू मुझे रोज बहारों में मिला करता था

तू मुझे रोज  बहारों मे मिला करता था !
आसमानों के सितारों में मिला करता था !
जब से रूठा  है तू मैं हो गया हूँ तनहा  सा !
तू मुझे मौजे किनारों में मिला करता था !

कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
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