शनिवार, 23 दिसंबर 2017

Jisko rakshak samajh rahe the wo hi....

जब कुर्सी का नशा जनमानस  की समस्याओ को भूलने का कारण बन जाये, गरीबों और किसानो  की स्थिति जस की तस बनी रहने लगे, देश की होनहार युवा जनता बेरोजगारी  का दंश  झेल  रही हो और पूरे देश में जातिवाद  के नाम पर गृहयुद्ध  जैसे हालात पैदा हो गए हों तो ये लिखना कलम की मजबूरी  हो जाती है !

जिसको रक्षक समझ रहे थे ,वो ही तन पे आरी  निकले !
शेर खाल में घूम  रहे थे , गधे  की हिस्सेदारी  निकले !
बातें बहुत गरीबों की थी जिनके मुँह में वर्षों से ,
कुर्सी मिलते ही सब भूले  , चोर चोर की यारी निकले !

सुलग रहा है देश ये सारा जातिवाद के झगड़ों में ,
कुछ है पोषक  पिछड़ों  के तो कुछ हैं शामिल अगड़ों में ,
देश की बातें करने वाले भावों के व्यापारी निकले ,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर-2 की यारी निकले !

कृषक के बच्चे तरस  रहे हैं , सूखी रोटी खाने को ,
नेता जी को समय नहीं है उनका दर्द मिटाने को !
हर गरीब को काम मिलेगा , भाषण  सब सरकारी निकले,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर-2  की यारी निकले !

कल तक बात गरीबों की जो करते थे चौराहों पर,
हाथ मिलाते, पैर दबाते  मिलते थे जो राहों  पर ,
बदल गए वो समय बदलते, लाइलाज बीमारी निकले,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर-2  की यारी निकले !

कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
कवि एवं लेखक
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ब्लॉग- www.kavishivallahabadi.blogspot.com
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