गुरुवार, 1 जून 2017

गौहत्या पर प्रहार करती मेरी ये रचना

कुछ समय पूर्व असहिश्नुता का रोना रोने वाले काँग्रेसी नेताओ द्वारा आज की जा रही गौहत्या और कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा उस समय असहिश्नुता के समर्थन मे मेडल लौटाने पर एवं आज उनके मौन साधना पर प्रहार करती मेरी रचना से कुछ पंक्तियाँ:-

बुद्धिजीवियों की जो टोली
थी वो जाने कहाँ गयी !
आसमान है निगल गया
या कि धरती ये समा गयी !

जब आज सरे चौराहे पर,
गायों को काटा जाता है !
खून,मांस के कतरे को ,
आपस मे बाँटा जाता है !

तो फिर वो दिखती नही मुझे,
आमिर की बोली कहाँ गयी !
मेडल लौटाने वाले उन,
दुष्टो की टोली कहाँ गयी !

कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
कवि एवं लेखक
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