अक्सर तेरा रूप निखरते देखा है ,
छुप छुप कुछ यूँ आज सवारते देखा है !
तेरे होकर कैसे और के हो पाते,
घुट-2 खुद को आज बिखरते देखा है !
कवि शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084
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अक्सर तेरा रूप निखरते देखा है ,
छुप छुप कुछ यूँ आज सवारते देखा है !
तेरे होकर कैसे और के हो पाते,
घुट-2 खुद को आज बिखरते देखा है !
कवि शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084
आज की स्थिति पर पंक्तियाँ :-अपनी राय अवश्य दें !
सूरज में नरमी सी क्यों है ,क्यों घोर निराशा छायी है !
क्यों भंवरों की गुनगुन सुन करके पंखुड़ियां घबराईं हैं ?
क्यों शेर बँधे से बैठे हैं दुश्मन को मत्था टेक रहे ,
क्यों लोग लहू के प्यासे है , क्यों नेता रोटी सेंक रहे ,
क्यों आज निराशा के संगम में चारो ओर कुहासा है ?
क्यों सागर के बाहों में रहकर के भी नाविक प्यासा है ?
क्यों सूरज की गर्मी सहकर बारिश की कोई आस नहीं,
क्यों रामराज की बातों में अब जनता को विश्वास नहीं !
क्यों बात आज समताओं की केवल कागज का फूल हुई ,
जो संविधान की बातें थी संसद के राह की धूल हुई !
क्यों जातिवाद के नाम पे प्रतिभाओं पे अत्याचार हुए,
क्यों आज हमारे ही अपने अंग्रेजों का किरदार हुए !
क्यों आज गरीबी को केवल जातों में तोला जाता है !
क्यों सत्ता की चाहत में नफरत का विष घोला जाता है !
क्या अब कोई भी राम नहीं जो समता का सममान करे,
क्या अब कोई आजाद नहीं जो जय जय हिंदुस्तान करें !
क्यों राष्ट्रगान कुछ नेताओ के मुख को हाला लगता है !
क्यों राष्ट्र की बातें भी उनको एक जहर का प्याला लगता है !
क्यों राजनीति कुछ वर्गमात्र के तुष्टिकरण का खेल हुई ,
कुर्सी पाने की चाहत में बेमेलों का भी मेल हुई !
क्या देश हमारा अब गिद्धों का यूँ आहार बन जायेगा ?
भारत माता को घायल कर वो नोच नोच कर खायेगा !
आओ अब कुर्सी से हटकर कुछ राष्ट्र नीति की बात करें !
इस देश को सच्चे अर्थों में गद्दारों से आजाद करें !
ऐ राजनीति करने वालों ये घृणित सियासत बंद करो !
धर्मों में देश को न बांटो ,न जातिवाद का द्वन्द करो !
धर्मों की आज सियासत है और जातिवाद की दूरी है !
आतंकी से न मोह करो , ये हिंदुस्तान जरूरी है !
शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084
जीवन का हर ताना बाना माँ होती है ,
बच्चे का संपूर्ण जमाना माँ होती है !
उसके बिना न जीवन की बगिया फलती है ,
खुशियों का संसार सुहाना माँ होती है !
राहों में हो धुप तो वो छाया होती है ,
बच्चों के हर सुख दुःख में साया होती है !
दुःखते दिल का मधुर तराना माँ होती है,
खुशियों का संसार सुहाना माँ होती है !
कवि शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084
फिर से हालातों पर मुझको गीत नए गढ़ने होंगे !
सत्य झूँठ की जंग छिड़ी है युद्ध मुझे लड़ने होंगे !
सीधे से चेहरों पर मैंने अजब मुखौटा देखा हैं ,
कंस, दुशासन की नगरी है ,हर चेहरे पढ़ने होंगे !
कवि शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084
कैसे कैसे जख्म मिले हैं सीने में,
क्या मिलता है जातिवाद को जीने में ?
कवि शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084
क्यों माला से मोती टूटे, क्यों वन से उपवन टूट गए !
जो कल तक होते थे अपने क्यों अपनों से ही रूठ गए ?
क्यों दुनिया चाँद सितारों की तूफ़ान के जद में बिखर गयी !
क्यों जातिवाद की लपटों में सब मर्यादायें सिहर गयी !
क्या बचा धर्म के झगडे में ,क्या रखा है कड़वी वाणी में ?
क्या तुमने धर्म लिखा पाया है हवा वनस्पति पानी में ?
क्यों बाँट रहे हो नफरत तुम क्यों लहूं बहाते फिरते हो
जीवन की चंद सी साँसों को क्यों व्यर्थ गंवाते फिरते हो !
आओ कुछ ऐसा काम करें की अपनेपन में खो जाएँ ,
सबकी मर्यादा को samjhe और एक दूजे के हो जाएँ !
कुछ ऐसा गीत लिखें मिल हम कि जीवन मधुरिम हो जाए,
हम विश्व शांति के दूत बने और शांति निशा में खो जाएँ !
जीवन को मधुर बनाने को सात्विक अरमान जरूरी है !
हो विश्व शांतिमय युगों युगों, एक हिंदुस्तान जरूरी है !
शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084
एक शेर :
भले हों पाँव मेरे आज भी गर्दिश में ऐ मौला,
मगर नजरें हमारी आज भी रहती सितारों पे !
कवि शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084
सरकारें बस महज दिखावा करती हैं !
झूठे वादे, झूठा दावा करती हैं !
कवि शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084
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एक शेर :
जख्म सीने में दबें हो लाख पर,
न कभी आँसू बहाना चाहिए !
दुनिया ये जालिम बड़ी बेदर्द है,
हर घड़ी बस मुस्कराना चाहिये !
कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
मोब.7398328084
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चंद सिक्कों के लिए जो बेचते हैं आबरू,
है दुखद कि आज वो ही देश के उद्गार हैं !
कवि शिव इलाहाबादी
मोब.7398328084
देवी तुल्य सभी नारियों को समर्पित मेरी रचना के कुछ अंश :
इस जीवन को वो ही परिपूर्ण बनाती है ,
हर सुख दुःख में सबका साथ निभाती है !
हम किसको उससे बेहतर कह दें हे राधे,
जो मुझको तेरा भी ज्ञान कराती है !
सच्चे अर्थो में वो ही देवी रूप भी है ,
इस दुनिया में जो नारी कहलाती है !
कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
कवि एवं लेखक
Mob-7398328084
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पुलिस भर्ती की जाति सीमा निर्धारण पर व्यंग
जिस पतवार ने पार लगाया उसको ही अब जला रहे हैं किसको लोकतंत्र कहते हैं , कैसा रिश्ता निभा रहे हैं ?
एक राष्ट्र की बातें करके जो कल तक थकते ही न थे ,
राष्ट्रवाद की दीवारों को जातिवाद से जला रहें हैं !
ब्राह्मण और दलित कानूनों का अवाम में झगड़ा क्यों है ?
कोई जाति का पिछड़ा क्यूँ है ,जातिवाद ये अगड़ा क्यूँ है ?
कुर्सी के चक्कर में अपने ही अपनों को सता रहे हैं !
राष्ट्रवाद की दीवारों को जातिवाद से जला रहें हैं !
मजहब जाति पंथ के झगडे नैतिकता पर भारी क्यों हैं ,
कुर्सी पर बैठे गुंडे बदमाशों के आभारी क्यों हैं ?
रावण की नीयत वाले अब राम का मुखड़ा दिखा रहे हैं !
राष्ट्रवाद की दीवारों को जातिवाद से जला रहें हैं !
कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
मोब.7398328084
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जातिगत आरक्षण जिस तरह से देश की एकता, अखण्डता और विकास में बाधक बनकर खतरा पैदा कर रहा है , उस स्थिति में ये पंक्तियाँ लिखना आवश्यक हो जाता है !
आरक्षण की बदली जब सूरज को खाने लगती है ,
गीदड़ की टोली शेरो को राह दिखने लगती है ,
तब भारत के सौरव अपना गौरव खोने लगते हैं !
सिंहो के वंशज भी गीदड़ जैसे रोने लगते हैं !
तब भारत की बीमारू तस्वीर दिखाई देती है !
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !
कोहरे से जब चमक धरा की फीकी पड़ने लगती है !
इंसानी जातें श्वानी जातों सी लड़ने लगती हैं !
तब शावक भी धावक बन कर नर्तन करने लगते है !
और हजारों चूहे खाकर बिल्ले भी हज करते हैं !
तब भारत की बिखरी सी तस्वीर दिखाई देती है ,
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !
जातिवाद शोषित किसान जब सहमा-2 दिखता है !
आरक्षित लोहा मँहगा और सोना सस्ता बिकता है !
तब उन्नत मस्तिष्क गलत राहों पर मुड़ने लगते हैं ,
पेट पालने के खातिर जंगों से जुड़ने लगते हैं !
ऐसे में उनके दिल में एक पीर दिखाई देती है ,
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !
लोकतंत्र का खुले आम जब खंडन होने लगता है ,
देशद्रोहियों ,जयचंदों का वंदन होने लगता है !
और भेड़िये नरमांसों का भक्षण करने लगते हैं !
सत्ता में बैठे खूनी का रक्षण करने लगते हैं !
तब सरल ह्रदय के अंतस में एक पीर दिखाई देती है !
मुझको देश की हालत ही गंभीर दिखाई देती है !
कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
मोब.7398328084
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जब कुर्सी का नशा जनमानस की समस्याओ को भूलने का कारण बन जाये, गरीबों और किसानो की स्थिति जस की तस बनी रहने लगे, देश की होनहार युवा जनता बेरोजगारी का दंश झेल रही हो और पूरे देश में जातिवाद के नाम पर गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा हो गए हों तो ये लिखना कलम की मजबूरी हो जाती है !
जिसको रक्षक समझ रहे थे ,वो ही तन पे आरी निकले !
शेर खाल में घूम रहे थे , गधे की हिस्सेदारी निकले !
बातें बहुत गरीबों की थी जिनके मुँह में वर्षों से ,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर चोर की यारी निकले !
सुलग रहा है देश ये सारा जातिवाद के झगड़ों में ,
कुछ है पोषक पिछड़ों के तो कुछ हैं शामिल अगड़ों में ,
देश की बातें करने वाले भावों के व्यापारी निकले ,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर-2 की यारी निकले !
कृषक के बच्चे तरस रहे हैं , सूखी रोटी खाने को ,
नेता जी को समय नहीं है उनका दर्द मिटाने को !
हर गरीब को काम मिलेगा , भाषण सब सरकारी निकले,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर-2 की यारी निकले !
कल तक बात गरीबों की जो करते थे चौराहों पर,
हाथ मिलाते, पैर दबाते मिलते थे जो राहों पर ,
बदल गए वो समय बदलते, लाइलाज बीमारी निकले,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर-2 की यारी निकले !
कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
कवि एवं लेखक
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