सैनिकों पर पत्थरबाजी की घटना:कवि शिव इलाहाबादी(sainko par pattharbaji:- kavi shiv allahabadi)
दो
कौडी के पत्थरबाजों द्वारा सैनिकों को लातों से पीटने पर नेताओं की कोरी
बयानबाजी पर अपनी विरोध प्रतिक्रिया दर्ज कराती मेरी ये रचना:-
कहाँ गये जो छप्पन इंच का
सीना तान के चलते थे !
कहाँ गये वो जिनको देख के
दुश्मन राह बदलते थे !
ये वो थे जो पहले भारत
माँ को सब कुछ कहते थे !
कोई आंख उठाये तनकर,
तो ये चुप न रहते थे !
लेकिन उनकी कहाँ गयी,
वो खुद्दारी जो दिखती थी!
वो नीयत जो राष्ट्रप्रेम थी,
और कभी न बिकती थी !
लेकिन सत्ता के किस मद ने,
तुमको कायर कर डाला!
छप्पन इंच के सीने को ही,
जिसने घायल कर डाला !
आखिर क्या थी मजबूरी वो,
जिसने तुमको झुका दिया !
था विशाल जो कभी हिमालय,
उसको बौना बना दिया !
क्यो तुमनें सेना के हाथों,
प्लास्टिक की गन दे डाली,
क्यों जूते मरवाया उसको,
जिसने की थी रखवाली !
जूतों से उसको मरवाया,
क्या ये अच्छा काम किया ?
भारत माँ की इज्जत को,
यूँ दुनिया मे बदनाम किया !
रक्षक लात से पीटा जाये,
तो ये छोटी बात नही !
कोई आंख उठाये उनपर,
इतनी तो औकात नही !
लेकिन नियम तुम्हारे ऐसे,
कि उनको मजबूर किया !
भारत माँ की सेवा के,
सपनो को चकनाचूर किया !
काश के तुम उनके भावों को,
दिल से कभी समझ पाते!
देकर खुली छूट सैनिक को,
उनके दिल को पढ पाते !
बँधे हाथ गर खुल जायें
तो हर सैनिक आफत होगा !
पत्थर बाज न राह दिखेंगे,
घाटी में भारत होगा !
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
कवि एवं लेखक
मो.- 7398328084
सैनिकों पर पत्थरबाजी की घटना:कवि शिव इलाहाबादी(sainko par pattharbaji:- kavi shiv allahabadi)
दो कौडी के पत्थरबाजों द्वारा सैनिकों को लातों से पीटने पर नेताओं की कोरी बयानबाजी पर अपनी विरोध प्रतिक्रिया दर्ज कराती मेरी ये रचना:-
कहाँ गये जो छप्पन इंच का
सीना तान के चलते थे !
कहाँ गये वो जिनको देख के
दुश्मन राह बदलते थे !
ये वो थे जो पहले भारत
माँ को सब कुछ कहते थे !
कोई आंख उठाये तनकर,
तो ये चुप न रहते थे !
लेकिन उनकी कहाँ गयी,
वो खुद्दारी जो दिखती थी!
वो नीयत जो राष्ट्रप्रेम थी,
और कभी न बिकती थी !
लेकिन सत्ता के किस मद ने,
तुमको कायर कर डाला!
छप्पन इंच के सीने को ही,
जिसने घायल कर डाला !
आखिर क्या थी मजबूरी वो,
जिसने तुमको झुका दिया !
था विशाल जो कभी हिमालय,
उसको बौना बना दिया !
क्यो तुमनें सेना के हाथों,
प्लास्टिक की गन दे डाली,
क्यों जूते मरवाया उसको,
जिसने की थी रखवाली !
जूतों से उसको मरवाया,
क्या ये अच्छा काम किया ?
भारत माँ की इज्जत को,
यूँ दुनिया मे बदनाम किया !
रक्षक लात से पीटा जाये,
तो ये छोटी बात नही !
कोई आंख उठाये उनपर,
इतनी तो औकात नही !
लेकिन नियम तुम्हारे ऐसे,
कि उनको मजबूर किया !
भारत माँ की सेवा के,
सपनो को चकनाचूर किया !
काश के तुम उनके भावों को,
दिल से कभी समझ पाते!
देकर खुली छूट सैनिक को,
उनके दिल को पढ पाते !
बँधे हाथ गर खुल जायें
तो हर सैनिक आफत होगा !
पत्थर बाज न राह दिखेंगे,
घाटी में भारत होगा !
कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
कवि एवं लेखक
मो.- 7398328084
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