बुधवार, 26 अप्रैल 2017

आरक्षण पर लिखी मेरी कविता :कवि शिव इलाहाबादी(arakshan par likhi meri kavita:kavi shiv allahabadi

आरक्षण पर प्रहार करता मेरा ये व्यंग्य:-

उगता सूरज ढलते देखा,
हमने तो रण मे वीरों को भी,
कायर सा चलते देखा,
उगता सूरज ढलते देखा।

हो गया ये रोशन जग सारा,
फिर भी न मिला कोई न्यारा,
जो बुझा सके इस अगनी को,
जिसे दुनिया मे जलते देखा।
उगता सूरज.........................

हर जगह है भ्रष्टाचार यहाँ,
है कत्ल, समस्या यहाँ,वहाँ।
जो शांत समंदर था एक दिन,
उसमे भी अनल जलते देखा।
उगता सूरज.........................

हर जगह जाती का परदा है,
इसमे जिंदा बना मुर्दा है।
इस जातिवाद की अग्नी मे,
परवानो को जलते देखा।
उगता सूरज ................

जीवन मे कोई सीख नहीं,
भूखे को कोई भीख नहीं।
इस जग की विषम परिस्थिति मे,
मुरदो को भी चलते देखा।
उगता सूरज....................

हर तरफ तो अब हरियाली है,
हर गाँव मे ही खुशियाली है।
लेकिन दुख है तो ‘यश’ इतना,
की जिंदों को जलते देखा।
उगता सूरज.....................
                                                                    शिव पाण्डेय ’यश’
(कवि एवं लेखक)
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