मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

प्यार की गहराई पर लिखी मेरी रचना :-

चाहत की अपार गहराई को बयाँ करती मेरी ये नवीन रचना:-

तूफानों से भी टकराने का जज्बा रखता है।
वो समंदर है अपने सीने मे दरिया रखता है।
तुम मुझे गैर भी समझो तो कोई बात नहीं।
वो मुझे अपने मे समेट लेने की चाहत रखता है।

कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
कवि एवं लेखक
मो.-7398328084
All Rights Reserved@kavishivallahabadi
ब्लॉग-www.kavishivallahabadi.blogspot.com

चाहत की अपार गहराई को बयाँ करती मेरी ये नवीन रचना:-

तूफानों से भी टकराने का जज्बा रखता है।
वो समंदर है अपने सीने मे दरिया रखता है।
तुम मुझे गैर भी समझो तो कोई बात नहीं।
वो मुझे अपने मे समेट लेने की चाहत रखता है।

कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
कवि एवं लेखक
मो.-7398328084
All Rights Reserved@kavishivallahabadi
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शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

सैनिको पर पत्थरबाजी -कवि शिव इलाहाबादी (sainiko par pattharbaji:kavi shiv allahabadi )


सैनिकों पर पत्थरबाजी की घटना:कवि शिव इलाहाबादी(sainko par pattharbaji:- kavi shiv allahabadi)

दो कौडी के पत्थरबाजों द्वारा सैनिकों को लातों से पीटने पर नेताओं की कोरी बयानबाजी पर अपनी विरोध प्रतिक्रिया दर्ज कराती मेरी ये रचना:-


कहाँ गये जो छप्पन इंच का
सीना तान के चलते थे !
कहाँ गये वो जिनको देख के
दुश्मन राह बदलते थे !

ये वो थे जो पहले भारत
माँ को सब कुछ कहते थे !
कोई आंख उठाये तनकर,
तो ये चुप न रहते थे !

लेकिन उनकी कहाँ गयी,
वो खुद्दारी जो दिखती थी!
वो नीयत जो राष्ट्रप्रेम थी,
और कभी न बिकती थी !

लेकिन सत्ता के किस मद ने,
तुमको कायर कर डाला!
छप्पन इंच के सीने को ही,
जिसने घायल कर डाला !

आखिर क्या थी मजबूरी वो,
जिसने तुमको झुका दिया !
था विशाल जो कभी हिमालय,
उसको बौना बना दिया !

क्यो तुमनें सेना के हाथों,
प्लास्टिक की गन दे डाली,
क्यों जूते मरवाया उसको,
जिसने की थी रखवाली !

जूतों से उसको मरवाया,
क्या ये अच्छा काम किया ?
भारत माँ की इज्जत को,
यूँ दुनिया मे बदनाम किया !

रक्षक लात से पीटा जाये,
तो ये छोटी बात नही !
कोई आंख उठाये उनपर,
इतनी तो औकात नही !

लेकिन नियम तुम्हारे ऐसे,
कि उनको मजबूर किया !
भारत माँ की सेवा के,
सपनो को चकनाचूर किया !

काश के तुम उनके भावों को,
दिल से कभी समझ पाते!
देकर खुली छूट सैनिक को,
उनके दिल को पढ पाते !

बँधे हाथ गर खुल जायें
तो हर सैनिक आफत होगा !
पत्थर बाज न राह दिखेंगे,
घाटी में भारत होगा !

कवि शिव इलाहाबादी 'यश'
कवि एवं लेखक
मो.- 7398328084
©All Rights Reserved@kavishivallahabadi


सोमवार, 17 अप्रैल 2017

नारी उत्थान की कविता- कवि शिव इलाहाबादी(nari utthan ki kavita :kavi shiv allahabadi )


नारी उत्थान का समर्थन करती मेरी ये रचना

नारी उत्थान का समर्थन करती मेरी ये पंक्तियाँ:-

लड़कियों को भी ये अब अधिकार होना चाहिए।
उनको अपनी सोंच का हकदार होना चाहिए।

ज़िंदगी की जो कमी, न दूर हो किसी मोड पर
उनको भी उस राह का सहकार होना चाहिए।

पर्दे की मूरत बनाकर न रखा जाए उन्हे,
ज़िंदगी की जंग से दो चार होना चाहिए।

लोग बदलेंगे के जब यश खुद मे ही वो चाह हो।
रूढ़िवादी सोंच को इनकार होना चाहिए।


शिव इलाहाबादी यश
कवि एवं लेखक 
mob-7398328084

Lekhani ki taakat:-kavi shiv allahabadi(लेखनी की ताकत:कवि शिव इलाहाबादी )


मेरा ये नवीन मुक्तक मेरे सभी साथियों को समर्पित :-



मेरी कलम की स्याह तेरा रूप लिख देगी।

अगर ये चाह लेगी छांव को भी धूप लिख देगी।

ये न सोचो फकत शब्दों को ही हम बांध सकते हैं।

कि है भूखी तड़प ये कागजों पे भूख लिख देगी।


कवि शिव इलाहाबादी "यश"

कवि एवं लेखक

Mob-7398328084

(All Rights Reseved@kavishivallahabadi)

Blog-www.kavishivallahabadi.blogspot.com

 

 


ब्राह्मण पर कविता :कवि शिव इलाहाबादी(poem on brahmin:kavi shiv allahabadi)


हे ब्राह्मण

हे ब्राह्मण ! तुम ठहरे क्यों हो?



हे ब्राह्मण ! तुम ठहरे क्यों हो?
सन्नाटा सा पसरे क्यों हो?
जीवन की जेठ दुपहरी सा तुम,
इतना बिखरे-बिखरे क्यों हो?

                                     तुममे तो साहस है अद्भुत
और अद्भुत तुममे ज्ञान है।
तू ही योद्धा परशुराम है,
तू ही चरक महान है।

कुछ भी नहीं है इस जग मे
जो तेरी पहुँच से दूर हो।
तुम ही जग के आर्यभट्ट हो,
तुम ही तुलसी सूर हो।

दिखला दे जो राह अंधेरों मे भी,
तुम वो दीप हो।
तुम हो मूंगा,तुम हो माड़िक,
तुम सागर के सीप हो।

तुममे शक्ति का पुंज है अद्भुत,
ये इतिहास बताता है।
तुमसे ज्ञानी,ज्ञान और
विज्ञान का अद्भुत नाता है।

हे शक्तिपुंज ब्राह्मण तुम अपनी,
                                   शक्ति भूलकर रुको नहीं।
तुम आरक्षण की बाधा देख के,
किसी के सम्मुख झुको नहीं ।

तुम हो महासागर जिसकी वो,
                             राह रोक न पाएगा।
                                    आरक्षण का किला भी तेरे
                                    सम्मुख टिक न पाएगा।

तुम फिर से शक्ति दिखलाओ,
ये करना बहुत जरूरी है।
ब्राह्मण का एकता मे रहना,
ये कलीयुग की मजबूरी है।

सोचो की तेरी शक्ति कहाँ है,
लुप्त हुई मायूसी मे।
अपनों की बेरुख बातों से ,
बदल गयी बेहोसी मे।

लेकिन रुकना नहीं है हमको,
अब ये सोच के ब्राह्मण जी।
ले तरकश तलवार खड़े हो,
छेड़ दो तुम फिर से रण जी।

अगर हुए तुम सक्रिय तो फिर,
कोई न टिकने पाएगा।
आरक्षण का किला भी
अपने आप ही ढहता जाएगा।

हम अबाध सागर हैं यश
जो रस्ता अपना खोजेंगे।
मिली अगर न राहें अपनी,
नये तरीके सोचेंगे।




शिव पाँडेय "यश"
कवि एवं लेखक
Mob-73983280
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