आबों में कड़वाहट क्यों है ,क्यों पुष्प पंखुड़ी बिखरी सी ,
क्यों आज कली है मुरझाई जो कल होती थी निखरी सी !
क्यों माला से मोती टूटे, क्यों वन से उपवन टूट गए !
जो कल तक होते थे अपने क्यों अपनों से ही रूठ गए ?
क्यों दुनिया चाँद सितारों की तूफ़ान के जद में बिखर गयी !
क्यों जातिवाद की लपटों में सब मर्यादायें सिहर गयी !
क्या बचा धर्म के झगडे में ,क्या रखा है कड़वी वाणी में ?
क्या तुमने धर्म लिखा पाया है हवा वनस्पति पानी में ?
क्यों बाँट रहे हो नफरत तुम क्यों लहूं बहाते फिरते हो
जीवन की चंद सी साँसों को क्यों व्यर्थ गंवाते फिरते हो !
आओ कुछ ऐसा काम करें की अपनेपन में खो जाएँ ,
सबकी मर्यादा को samjhe और एक दूजे के हो जाएँ !
कुछ ऐसा गीत लिखें मिल हम कि जीवन मधुरिम हो जाए,
हम विश्व शांति के दूत बने और शांति निशा में खो जाएँ !
जीवन को मधुर बनाने को सात्विक अरमान जरूरी है !
हो विश्व शांतिमय युगों युगों, एक हिंदुस्तान जरूरी है !
शिव इलाहाबादी
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