Hasya Kavi Sammelan Organisers and booking,Hasya Kavi Sammelan booking Conta,Kavi Sammelan poets,Best Hasya Kavi,Contact list of Kavi Sammelan booking, how to book a Kavi Sammelan show, Hasya Kavi Sammelan list, best Hasya Kavi, viral Hasya Kavi, Kavi Sammelan book karne ka number, Kavi Sammelan booking contact number, Kavi Sammelan organisers, Hasya Kavi Sammelan booking, best oj kavi, best ghazalkar in India, India ke sabse acche Kavi, Bharat ke sabse acche shayar shayar, shayari,geet,gazal
शनिवार, 30 दिसंबर 2017
लाठिया बाजार में बिकने लगी हैं
शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017
मैं हालातों का शायर हूँ......
शनिवार, 23 दिसंबर 2017
Jisko rakshak samajh rahe the wo hi....
जब कुर्सी का नशा जनमानस की समस्याओ को भूलने का कारण बन जाये, गरीबों और किसानो की स्थिति जस की तस बनी रहने लगे, देश की होनहार युवा जनता बेरोजगारी का दंश झेल रही हो और पूरे देश में जातिवाद के नाम पर गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा हो गए हों तो ये लिखना कलम की मजबूरी हो जाती है !
जिसको रक्षक समझ रहे थे ,वो ही तन पे आरी निकले !
शेर खाल में घूम रहे थे , गधे की हिस्सेदारी निकले !
बातें बहुत गरीबों की थी जिनके मुँह में वर्षों से ,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर चोर की यारी निकले !
सुलग रहा है देश ये सारा जातिवाद के झगड़ों में ,
कुछ है पोषक पिछड़ों के तो कुछ हैं शामिल अगड़ों में ,
देश की बातें करने वाले भावों के व्यापारी निकले ,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर-2 की यारी निकले !
कृषक के बच्चे तरस रहे हैं , सूखी रोटी खाने को ,
नेता जी को समय नहीं है उनका दर्द मिटाने को !
हर गरीब को काम मिलेगा , भाषण सब सरकारी निकले,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर-2 की यारी निकले !
कल तक बात गरीबों की जो करते थे चौराहों पर,
हाथ मिलाते, पैर दबाते मिलते थे जो राहों पर ,
बदल गए वो समय बदलते, लाइलाज बीमारी निकले,
कुर्सी मिलते ही सब भूले , चोर-2 की यारी निकले !
कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
कवि एवं लेखक
Mob-7398328084
ब्लॉग- www.kavishivallahabadi.blogspot.com
All right Reserved@Kavishivallahajbadi
मंगलवार, 19 दिसंबर 2017
सोमवार, 18 दिसंबर 2017
रविवार, 17 दिसंबर 2017
Patrika news : shiv allahabadi
http://www.patrikanews.net/poetry-stick-is-selling-in-the-market/
हड्डियां कमजोर सी दिखने लगी हैं !
शनिवार, 16 दिसंबर 2017
कवि शिव इलाहाबादी : एक व्यंग्य ek vyangya : kavi shiv allahabadi
एक व्यंग्य :-
चंद सिक्कों की जदों में बह गए वो सूरमा,
जो कभी इंसानियत की बात कर थकते न थे !
कवि शिव इलाहाबादी ’यश’
कवि एवं लेखक
Mob-7398328084
ब्लॉग- www.kavishivallahabadi.blogspot.com
All right Reserved@Kavishivallahajbadi
रविवार, 10 दिसंबर 2017
तू मुझे रोज बहारों में मिला करता था
तू मुझे रोज बहारों मे मिला करता था !
आसमानों के सितारों में मिला करता था !
जब से रूठा है तू मैं हो गया हूँ तनहा सा !
तू मुझे मौजे किनारों में मिला करता था !
कवि शिव इलाहाबादी
कवि एवं लेखक
मोब.7398328084
ब्लॉग www.kavishivallahabadi.blogspot.com
All rights reserved@kavishivallahabadi